सूर्यग्रहण का मतलब व ग्रहण के समय रखने वाली सावधानियाँ

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सूर्यग्रहण लगने के वैज्ञानिक और धार्मिक दोनों ही कारण हैं। विज्ञान के अनुसार सूर्य ग्रहण लगना एक फेस्टिवल की तरह ही है क्योंकि उससे उन्हें ब्रह्मांड के बारे में और भी ज्यादा जानने का मौका मिलता है। विज्ञान अनुसार सूर्यग्रहण तब लगता है जब चंद्रमा आंशिक या पूर्ण रूप से सूर्य को अपनी छाया से कवर कर लेता है। इस प्रक्रिया में चांद सूर्य और धरती के बीच में आ जाता है।

धार्मिक कथा के अनुसार सूर्यग्रहण की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है। प्राचीन काल में देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। इस मंथन में 14 रत्न निकले थे। समुद्र मंथन में जब अमृत निकला तो इसके लिए देवताओं और दानवों के बीच युद्ध होने लगा। तब श्री हरी ने मोहिनी अवतार लिया और देवताओं को अमृत पान करवाने लगे। उस समय राहु नाम के असुर ने भी देवताओं का वेश धारण करके अमृत पान कर लिया। चंद्र और सूर्य ने राहु को पहचान लिया और भगवान विष्णु को बता द‍िया।तब विष्णुजी ने क्रोधित होकर राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन तब तक उसने अमृतपान कर लिया था। हालांकि, अमृत गले से नीच नहीं उतरा था, लेकिन उसका सिर अमर हो गया। सिर राहु बना और धड़ केतु के रूप में अमर हो गया। भेद खोलने के कारण ही राहु और केतु की चंद्र और सूर्य से दुश्मनी हो गई। कालांतर में राहु और केतु को चंद्रमा और पृथ्वी की छाया के नीचे स्थान प्राप्त हुआ है। उस समय से राहु, सूर्य और चंद्र से द्वेष की भावना रखता हैं तथा चंद्र और सूर्य को अपना शत्रु मानता है और समय-समय पर इन ग्रहों को ग्रसता है। शास्त्रों में इसी घटना को सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण कहा जाता है।
ज्योतिषशास्त्र में सूर्यग्रहण को अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण माना गया है। इस द‍िन पूजा-पाठ के अलावा तांत्रिक गत‍िवि‍ध‍ियों संबंध‍ित भी कई कार्य क‍िए जाते हैं। वहीं कुछ ऐसे उपाय भी होते हैं जो ग्रहण के द‍िन क‍िए जाएं तो बड़ी से बड़ी समस्‍या से राहत म‍िल सकती है। लेक‍िन इन उपायों के साथ सूर्यग्रहण काल के कुछ न‍ियम भी हैं। मान्‍यता है क‍ि अगर इनका ध्‍यान रखा जाए तो जातकों पर सूर्यग्रहण का अशुभ प्रभाव नहीं पड़ता। आइए जानते हैं…

१) ग्रहण से कम से कम दो घंटे पहले भोजन करें :- सूर्य की नीली और पराबैंगनी किरणें, प्राकृतिक कीटाणुनाशक के रूप में कार्य करती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सूर्य ग्रहण के दौरान उनकी तीव्रता और तरंग दैर्ध्य अन्य दिनों की तरह नहीं होते हैं। परिणामस्वरूप, किरणें हमारे भोजन को साफ करने की अपनी सामान्य भूमिका नहीं निभाती हैं, और खाद्य उत्पादों में सूक्ष्मजीवों की अनियंत्रित वृद्धि हो जाती है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार, ग्रहण काल के दौरान भोजन बनाने और खाने से बचना चाहिए। ग्रहण के बाद नया भोजन बनाना चाहिए। यद‍ि संभव हो तो ग्रहण के बाद घर में रखा सारा पानी बदल दें। मान्‍यता है क‍ि ग्रहण के बाद पानी दूषित हो जाता है। इसलिए ग्रहण काल में रखा हुआ पानी या खाना नहीं खाना चाहिए। कहते हैं क‍ि यद‍ि यह सावधानी बरती जाए तो ग्रहण का दुष्‍प्रभाव नहीं पड़ता।
उपाय :- अगर भोजन बनाकर रखा हो और ग्रहण लगने वाला हो तो उसमें तुलसी का पत्‍ता या कुश डाल दें। मान्‍यता है क‍ि ऐसा करने से ग्रहण का दुष्‍प्रभाव नहीं पड़ता। यदि आप गर्भवती हैं, वृद्ध हैं, अस्वस्थ हैं या किसी और विशेष परिस्थिति में जहां लगातार जल की आवश्यकता होती है, तो आप उबला हुआ पानी ठंडा करने के बाद पी सकते हैं। अपनी सुरक्षा के लिए, आप एंटीवायरल गुणों से युक्त तुलसी अर्क को पानी में मिला कर पी सकते हैं। आप उस समय ऊर्जा के लिए किशमिश जैसे सूखे मेवों का भी सेवन कर सकते हैं।

) ग्रहण के बाद स्नान करे :- ज्‍योत‍िषशास्‍त्र के अनुसार, ग्रहण काल के दौरान पहने हुए कपडे़ अशुद्ध हो जाते हैं। इसलिए जैसे ही ग्रहण खत्‍म हो कपड़ों सहित स्‍नान कर लेना चाहिए। ध्‍यान रखें क‍ि ग्रहण काल शुरू होते ही स्‍वयं पर गंगाजल डालकर शुद्धिकरण कर लेना चाहिए। इसके अलावा ध्‍यान रखें क‍ि ग्रहण के दौरान कभी भी पत्‍ते, लकड़ी या फिर फूल नहीं तोड़ने चाहिए।

३) ग्रहण के दौरान बाहर जाने से बचे :- इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, न ही आयुर्वेद में इस तरह का कोई प्रतिबंध है। हालांकि, गर्भवती महिलाओं के लिए घर के अंदर रहना और जप करना और अजन्मे बच्चे के अच्छे स्वास्थ्य के लिए ध्यान करना बेहतर है। ध्यान और जप के सकारात्मक स्पंदनों से बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर लाभकारी प्रभाव पड़ता है।

४) ग्रहण के दौरान सीधे सूर्य को देखने से बचना चाहिए :- सूर्य को सीधे देखने की सलाह कभी नहीं दी जाती है। हालांकि, ग्रहण के दौरान इसे करने से आंखों की स्थायी क्षति हो सकती है। यह इस समय सूर्य की किरणों की तीव्रता के कारण होता है जो आंखों में कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है जिससे रेटिना में जलन हो सकती है |
आप इस घटना को ग्रहण-प्रमाणित चश्मे से देख सकते हैं, जो नियमित धूप के चश्मे से हजार गुना गहरे हैं। आप नग्न आंखों के माध्यम से सीधे सूर्य को देखने के विपरीत अनुमानित या प्रतिबिंबित छवियों को भी देख सकते हैं। आपको दूरबीन और दूरबीन जैसे दृश्य आवर्धक से पूरी तरह बचना चाहिए।

५) सूर्य ग्रहण के दौरान ध्यान व जप करना उत्तम माना जाता है :- सुबह के समय प्रतिदिन ध्यान करना एक अच्छी आदत है। सूर्य ग्रहण के दौरान विशेष रूप से ध्यान करने की सलाह दी जाती है। इसका कारण यह है कि मन का संबंध चंद्रमा के साथ है और शरीर का पृथ्वी के साथ है। चूँकि सूर्य मन और शरीर दोनों से जुड़ा हुआ है, इसलिए जब सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी तीनों आकाशीय पिंड एक ही रेखा में होते हैं, तो मन और शरीर भी एक साथ होते है, इसलिए सूर्यग्रहण ध्यान करने का एक उत्तम समय माना जाता है।
ध्यान आपके ऊर्जा स्तर को बढ़ाता है। जिस समय आपकी ऊर्जा का स्तर सूर्य के ग्रहण के कारण स्वाभाविक रूप से कम होता है, उस समय ध्यान महत्वपूर्ण है। इससे शरीर को शक्ति और ऊर्जा मिलती है।
कहा जाता है कि सूर्य ग्रहण के दौरान प्रकृति अपना ख्याल रखती है। ऐसा कहा जाता है कि कई गाने वाले पक्षी गाना बंद कर देते हैं और कुछ फूल बंद हो जाते हैं। प्रकृति ने इन प्राणियों को खुद की देखभाल करना सिखाया है, तो मनुष्यों के लिए भी यह आवश्यक होगा कि वे स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक सावधानी बरतें। ध्यान और जप के माध्यम से अपने आत्मा से जुड़ने का यह सटीक समय हो सकता है।

६) ग्रहण के समय संभोग करने, मंजन करने, तेल लगाने और ताला खोलने जैसे कार्यों से बचना चाहिए। अन्‍यथा इसका दुष्‍प्रभाव पड़ता है और कई तरह के कष्‍टों को भुगतना पड़ता है।माल‍िश या उबटन लगाने से बचना चाहिए। अन्‍यथा ऐसा करने से ग्रहण का दुष्‍प्रभाव पड़ता है और व्‍यक्ति अगले जन्‍म में सुअर योन‍ी में जन्‍म लेता है। इसके अलावा ग्रहण के दौरान ऐसा कोई भी खाद्य पदार्थ जो हमारे शरीर के तापमान को बढ़ा देता है और जिसे पचाना शरीर के लिए मुश्किल होता है उनका सेवन ग्रहण के दौरान नहीं करना चाहिए वरना डाइजेशन से जुड़ी दिक्कतें और बीमारियां हो सकती हैं। अधिक तला हुआ और बाहर के खाने से परहेज करना चाहिए।

७) पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार, नॉन वेजिटेरियन फूड शरीर के तापमान को बढ़ा देता है क्योंकि इसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है और शरीर के लिए इन्हें डाइजेस्ट करना मुश्किल हो जाता है। इसलिए जो लोग पहले से बीमार हैं उन्हें तो अंडा और मीट से ग्रहण के दौरान दूर ही रहना चाहिए। स्कंदपुराण में कहा गया है कि ग्रहण के समय दूसरों का अन्न खाने से 12 वर्षों का एकत्रित पुण्य नष्ट हो जाता है। जबकि देवी भागवत पुराण में बताया गया है कि ग्रहण के समय खाने से मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है उसे उतने वर्षों तक अरुतुन्द नाम के नरक को भोगना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति जब धरती पर पैदा होता है तो उसे उदर रोग, गुल्मरोग और दांतों की परेशानी होती है।

८) किसी को धोखा देना और ठगना पाप माना गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि ग्रहण के समय जो लोग दूसरों को धोखा देते हैं या छल कपट करते हैं उन्हें अगले जन्म में सर्प योनी में जन्म लेना पड़ता है। ग्रहण के समय मसाज करवाना भी अशुभ फलदायी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि इससे कुष्ट रोग और चर्म रोग की परेशानी होती है।
कहा जाता है कि सूर्य ग्रहण के दौरान प्रकृति अपना ख्याल रखती है। ऐसा कहा जाता है कि कई गाने वाले पक्षी गाना बंद कर देते हैं और कुछ फूल बंद हो जाते हैं। प्रकृति ने इन प्राणियों को खुद की देखभाल करना सिखाया है, तो मनुष्यों के लिए भी यह आवश्यक होगा कि वे स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक सावधानी बरतें। ध्यान और जप के माध्यम से अपनी आत्मा से जुड़ने का यह सटीक समय हो सकता है।


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