नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा और उपासना की जाती है, देवी के इन रूपों को पापों का विनाशिनि कहा जाता है। नवरात्रि सकारात्मकता का त्यौहार है। यह बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव मनाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध करके असुरी शक्तियों का सर्वनाश किया था। माँ भवानी ने नौ दिन तक युद्ध किया और दसवें दिन दैत्य का वध किया। देवी के हर रूप और नौ दिनों की नौ देवियाँ अपने विशेष आशीर्वाद के लिए जानी जाती है । आइए जानते है माँ दुर्गा के नौ रूप और किस देवी से मिलता है कौन सा शुभ वरदान –
१) शैलपुत्री – माँ दुर्गा का प्रथम रूप है शैलपुत्री। पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है।नवरात्रि की प्रथम तिथि को माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है। ये वृषभ पर विराजती है। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल तो बाएं हाथ में कमल होता है।नवरात्रि की प्रथम तिथि को माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इनके पूजन से सदा धन-धान्य से परिपूर्ण रहते है।
२) ब्रह्मचारिणी – माँ दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है। ब्रह्मचारिणी अर्थात तप का आचरण करने वाली। इन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया था इसलिए इन्हें ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। इनके बाये हाथ में कमंडल तथा दाहिने हाथ में माला सुशोभित है। माँ दुर्गा का यह रूप भक्तों और साधकों को अनंत कोटि फल प्रदान करने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की भावना जाग्रत होती है।
३) चंद्रघंटा – माँ दुर्गा का तीसरा स्वरुप चंद्रघंटा है। इनकी आराधना तृतीया को की जाती है। इनमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्तियां समाहित है। इनके मस्तक पर अर्द्ध चंद्र सुशोभित है इसी कारण ये चंद्रघंटा कहलाती है। इनके घंटे की ध्वनि से सभी नकारात्मक शक्तियां दूर भाग जाती है। इनका रंग स्वर्ण के समान चमकीला है, ये सिंह पर विराजती है। इनकी उपासना से सभी पापों को मुक्ति मिलती है। वीरता के गुणों में वृद्धि होती है। स्वर में दिव्य अलौकिक माधुर्य का समावेश होता है व आकर्षण बढ़ता है।
४) कुष्मांडा -चतुर्थी के दिन माँ कुष्मांडा की आराधना की जाती है। इनकी मंद हंसी से ही ब्रह्माण्ड का निर्माण होने के कारण इनका नाम कुष्मांडा पड़ा। माँ कुष्मांडा की आठ भुजाएँ है वे इनमें धनुष, बाण, कमल, अमृत, चक्र, गदा और कमंडल धारण करती है। माँ के आठवें हाथ में माला सुशोभित है। इनकी उपासना से सिद्धियों, निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक दूर होकर आयु व यश में वृद्धि होती है।
५) स्कंदमाता – नवरात्रि का पांचवा दिन स्कंदमाता की उपासना का होता है। ये अपनी गोद में कुमार कार्तिकेय को लिए हुए है और कार्तिकेय का एक नाम स्कन्द है, इसी कारण ये स्कंदमाता कहलाती है। ये कमल के आसन पर विराजती है और इनका वाहन सिंह है। इनका स्वरुप स्नेहमय और मन को मोह लेने वाला है। इनकी चार भुजाएँ है, दो भुजाओं में कमल सुशोभित है तो वहीं एक हाथ वर मुद्रा में रहता है। माँ एक हाथ से अपनी गोद में स्कन्द कुमार को लिए हुए है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी है। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती है।
६) कात्यायनी – माँ का छठवाँ रूप कात्यायनी है। नवरात्रि के छठे दिन इनकी पूजा-अर्चना की जाती है। इन्होंने कात्यायन ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया था और ऋषि कात्यायन ने ही सर्वप्रथम इनका पूजन किया था। इसी कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ा। माँ कात्यायनी का स्वरुप तेजमय और अत्यंत चमकीला है। इनकी चार भुजाएँ है, दाहिनी तरफ ऊपर वाला हाथ अभयु मुद्रा में रहता है तो वही नीचे वाला हाथ वरमुद्रा में है। बाई ओर के ऊपर वाले हाथ में माँ तलवार धारण करती है तो वही नीचे वाले हाथ में कमल सुशोभित है। सिंह माँ कात्यायनी का वाहन है। इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है। कात्यायनी साधक को दुश्मनों का संहार करने में सक्षम बनाती है। इनका ध्यान गोधूलि बेला में करने होता है।
७) कालरात्रि – नवरात्रि के सप्तमी के दिन माँ कालरात्रि की आराधना की जाती है। इनका स्वरूप देखने में प्रचंड है लेकिन ये अपने भक्तों को सदैव शुभ फल प्रदान करती है। पौराणिक कथा के अनुसार रक्तबीज नामक राक्षस का संहार करने के लिए माँ ने ये भयानक रूप धारण किया था। इनकी पूजा-अर्चना से सभी पापों से मुक्ति मिलती है व दुश्मनों का नाश होता है।
८) महागौरी – देवी का आठवां रूप महागौरी है। इनकी पूजा सारा संसार करता है। पौराणिक कथा के अनुसार इन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की थी जिसके कारण इनका शरीर काला पड़ गया था। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर इन्हें गौर वर्ण प्रदान किया था इसलिए ये महागौरी कहलाई। ये श्वेत वस्त्र और आभूषण धारण करती है इसलिए इन्हें श्वेतांबरधरा भी कहा जाता है। इनकी चार भुजाएँ है। दाहिनी ओर ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में रहता है तो वही नीचे वाले हाथ में माँ त्रिशूल धारण करती है। बायीं ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरू रहता है तो नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में रहता है। महागौरी की पूजन करने से समस्त पापों का क्षय होकर चेहरे की कांति बढ़ती है। सुख में वृद्धि होती है। शत्रु-शमन होता है।
९) सिद्धिदात्री -माँ सिद्धिदात्री की आराधना नवरात्रि की नवमी के दिन किया जाता है। इनके नाम से ही पता चलता है की माँ सिद्धि प्रदान करने वाली है। धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव को इन्ही से सिद्धियाँ प्राप्त हुई थी और इन्हीं की अनुकम्पा से भगवान शिव का आधा शरीर नारी का हुआ था, जिसके बाद वे अर्द्धनारीश्वर कहलाए। ये कमल के फूल पर विराजती है। इनकी आराधना से भक्त की सारी मनोकामनाएँ पूरी होती है।